"महात्मा गाँधी जी के अनमोल विचार”
– बुराई से असहयोग करना मानव का पवित्र कर्तव्य है |
– जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती, वह कला ही नहीं है |
– जो अंतर को देखता है, ब्राह्मा को नहीं, वाही सचा कलाकार है |
– सच्चे कवि तो वे मने जाते है, जो मृत्यु में जीवन और जीवन में मृत्यु देख सके |
– क्रोध एक प्रचंड अग्नि है, जो मनुष्य इस अग्नि को वश में कर सकता है, वह उसको बुझा देगा | जो मनुष्य अग्नि को वश में नहीं कर सकता, वह स्वम अपने को जला लेगा |
– सभी महान धार्मिक नेताओ ने गरीबी को जन-बुझकर अपने भाग्य के समान अपनाया | मुहम्मद साहब ने कहा है कि गरीबी मेरा अभिमान है |
– भूल करने में पाप तो है ही, परंतु उसे छिपाने में उससे भी बड़ा पाप है |
– चरित्र कि शुदी ही सारे ज्ञान का ध्येय होना चाहिए |
– दुसरे के दोष पर ध्यान देते समय हम स्वयं बहुत भले बन जाते है | परंतु जब हम अपने दोषों पर ध्यान देगे, तो अपने आपको कुटिल और कामी पाएगे|
– सभी छुपे दोषों का उपाय ढूढना कठिन होता है |
– जो चीच विकार को मिटा सके, राग-द्वेष को कम कर सके, जिस चीच के उपयोग से मन सूली पर चढ़ते समय भी सत्य पर डटा रहे वाही धर्म कि शिक्षा है |
– जिनमे नम्रता नहीं आती, वे विधा का पूरा सदुपयोग नहीं कर सकते | नम्रता का अर्थ है अहंभाव का आत्यंतिक क्षय |
– ईशवर न काबा में है न काशी में है, वह तो घर – घर में व्याप्त है, हर दिन में मोजूद है |
– पाप करने का अर्थ यह नहीं कि जब वह आचरण में आ जाए, तब ही उसकी गिनती पाप में हुई | पाप तो जब हमारी दुष्टि में आ गया, विचार में आ गया वह हमसे हो गया |
– पुस्तके मन के लिए साबुन का कार्य करती है |
– प्रजातंत्र का अर्थ में यह समझता ही कि इसमें निचे से निचे और ऊँचे से ऊँचे आदमी को आगे बढने का समान अवसर मिले |
– वही राष्ट्र सच्चा लोकतन्त्रात्मक है, जो अपने कार्यो को बिना हस्तक्षेप के सुचारू और सक्रीय रूप से चलाता है |
– बहुमत ही लोकतंत्र कि सच्ची कसोटी नहीं है | सच्चा लोकतंत्र लोगो कि वृति और अभिलाषाओ का प्रतिनिधित्व करनेवाले थोड़े व्यकितयों से असंगत नहीं है |
– प्रार्थना का आमन्त्रण निश्चय ही आत्मा कि व्याकुलता का घोतक है | प्रार्थना पश्चताप पा एक चिहन है | प्रार्थना हमारे अधिक अच्छे, अधिक शुद्ध होने कि आतुरता को सूचित करती है |
– प्रार्थना नम्रता कि पुकार है; आत्मशुदी का, आत्म्निरिझणका आहान है |
— मनुष्य को अपनी और खिचनेवाला यदि जगत में कोई असली च्न्ब्क है, तो वह केवल प्रेम है |
– जिस मनुष्य को अपने मनुष्यत्व का भान है, वह ईश्वर के सिवा और किसी से भय नहीं करता |
– भगवान ने मनुष्य को अपने ही समान बनाया, पर दुर्भाग्य से इन्सान ने भगवान को अपने जैसा बना डाला |
– मृत्यु सारे प्राणियों को भगवान की दी हुई दें है | फर्क सिर्फ समय और तरीके का है |
– मोन सवोत्तम भाषण है | अगर बोलना ही चाहिए, तो कम से सम बोलो | एक शब्द से काम चले, तो दो नहीं |
– क्रोध को जितने में मोन जितना सहायक होता है, उतनी और कोई भी वस्तु नहीं |
– योवन विकारो को जितने के लिए मिला है | उसे हम व्यर्थ ही न जाने दे |
– में इस बात से समहत नहीं हू कि धर्म का राजनीति से कोई सबंध नहीं है | धर्म से विलग राजनीति म्रतक शरीर के तुल्य हे जो केवल जला देने योग्य है |
– आचरण रहित विचार, कितने अच्छे क्यों न हो, उन्हें खोटे मोती कि तरह समझना चाहिए |
– वीरता मरने में नहीं है, मरने में है, किसी कि प्रतिष्ठा बचाने में है, प्रतिष्ठागवाने में नहीं |
– अहिंसा वीरो कि होने चाहिए, दुर्ब्रलो कि कदापि नहीं | जब श्रत्र कि धार शरीर में लगती है, तभी वीरता कि परीक्षा होती है |
– जिस मनुष्य ने अपनी सारी इच्चोओं का त्याग कर दिया है एवं में और मेरे मन के भाव से जो मुकत हो गया है, वाही शांति पाता है |
– सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा के आधार है |
– हमारी आज कि शिक्षा में चाहे जितने सदगुण हो, किन्तु उसमे जो बड़ा दुर्गुण है, वह वाही है कि उसमे बुदी को ऊँचा और परिक्षम को नीचा स्थान दिये जाने कि भावना है |
– कोई भी संस्क्रती जीवित नहीं रह सकती, यदि वह अपने को अन्य से प्रथक रखने का प्रयास करे |
– परमेश्वर सत्य है; यह कहने के बजाय ‘सत्य ही परमेश्वर है’ यह कहना अधिक उप्येक्त है |
– वास्तविक सोदर्य ह्रदय कि पवित्रता में है |
– ह्रदय कि कोई भाषा नहीं होती है, ह्रदय ह्रदय से बातचीत करता है |
– ज्ञान का अंतिम लश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए |
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